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सदन में नेता सदन की अमर्यादित भाषा, असम्मानजनक व्यवहार, लोकतंत्र को शर्मसार करता है : आराधना मिश्रा

सूर्योदय भारत समाचार सेवा, लखनऊ : कांग्रेस नेता विधानमंडल दल श्रीमती आराधना मिश्रा “मोना” ने नेता विपक्ष विधानसभा माता प्रसाद पांडे जैसे वरिष्ठ नेता के साथ नेता सदन के द्वारा अमर्यादित भाषा और असम्मानजनक व्यवहार को लोकतंत्र को शर्मसार करने वाला बताया है !

श्रीमती आराधना मिश्रा “मोना” ने कहा कि यह एक गम्भीर विषय और अत्यंत दुखद है कि नेता विपक्ष माता प्रसाद पांडे ने नेता सदन के समक्ष, अपने साथ गोरखपुर में हुए दुर्व्यवहार की बात रखना चाहते थे और गोरखपुर की घटना की जांच चाहते थे, लेकिन सोमवार जिस तरह सदन के अंदर नेता विपक्ष की बात न सुनकर, नेता सदन ने अमानवीय और असंवेदनशील रवैया अपनाया और विषय की गंभीरता को न समझ उपहास जैसा बयान दिया, यह बहुत गलत है !

एक तरफ भाजपा सरकार प्रत्येक व्यक्ति की सुरक्षा का वादा करती बातें करती है, लेकिन नेता विपक्ष के जिस तरह घटना हुई, भाजपा नेताओं ने दुर्व्यवहार किया और सुरक्षा की अनदेखी हुई यह सरकार के अहंकार को दर्शाता है । सरकार सदैव एक पार्टी की नही रहती, कभी हम भी सत्ता में थे आज विपक्ष में हैं, आप यहां थे आज सत्ता में हैं लेकिन मर्यादाएं टूटनी नही चाहिए
सदन के किसी भी सदस्य का अपमान पूरे सदन का अपमान है, हमें उम्मीद थी कि सरकार आज इस पर गंभीर रुख अपनाकर जांच कराती और दोषियों पर कार्यवाही का भरोसा देती, लेकिन उल्टा सदन के सदस्य को अमर्यादित भाषा से अपमानित किया जा रहा है ये दुर्भाग्यपूर्ण है !

श्रीमती आराधना मिश्रा “मोना” ने नेता विपक्ष एवं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एवं सदन के वरिष्ठ नेता माता प्रसाद पांडे का अपमान लोकतंत्र की आत्मा, संसदीय गरिमा और राजनीतिक मर्यादाओं पर हमला है।

कांग्रेस पार्टी की नेता विधानमंडल दल श्रीमती आराधना मिश्रा “मोना” ने मांग की है कि :

  1. नेता विपक्ष माता प्रसाद पांडे के साथ गोरखपुर में सुरक्षा चूक और हुए दुर्व्यवहार की निष्पक्ष जांच कर दोषियों को चिह्नित किया जाए।
  2. विधानसभा अध्यक्ष को इस मामले में स्पष्ट और सार्वजनिक स्पष्टीकरण देना चाहिए।
  3. सरकार को सदन में नेता विपक्ष माता प्रसाद पांडे से औपचारिक माफ़ी मांगनी चाहिए।
  4. भविष्य में सदन के सदस्य और सदन की गरिमा बनाए रखने के लिए आचार संहिता लागू की जाए।

श्रीमती आराधना मिश्रा “मोना” ने कहा कि “अगर आज एक वरिष्ठ नेता के साथ ऐसा हो सकता है, तो कल किसी भी जनप्रतिनिधि की आवाज़ दबाई जा सकती है। यह लोकतंत्र का प्रश्न है, किसी एक दल का नहीं।”

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