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बिहार में मतदाता सूची पुनरीक्षण : अभी क्यों – पहले क्यों नहीं ?

नरेन्द्र श्रीवास्तव, लखनऊ : बिहार में मतदाता पुनरीक्षण ने दो महत्वपूर्ण सवाल खड़े कर दिये हैं ! एक तो कई जिलों से यह सूचना आई है कि कुल आबादी का 120 % तक आधार कार्ड बन गये हैं, दूसरा सर्वे में नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश के नागरिक भी पाए गए हैं ! अब सवाल यह उठता है कि आधार कार्ड इतने अधिक कैसे बन गए ? यदि बन गए तो बनाने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है ?आधार कार्ड प्रशासनिक व्यवस्था के तहत ही बनते हैं ! कर्मचारी या अधिकारियों ने ही बनाए होंगे तो जिन लोगों ने गलत आधार कार्ड बनाए उनके खिलाफ क्या कार्रवाई हुई या होगी ? जिनके पास मतदाता बनने के लिए कोई कागज नहीं होगा वह देश में कैसे रह सकते हैं ?

लोकतंत्र का आधार चुनाव होता है और चुनाव का आधार मतदाता ! देश का नागरिक ही मतदाता बन सकता है और प्रत्याशी भी ! लेकिन, जब मतदाता सूची में नाम नहीं है तो वह देश का नागरिक कैसे हो सकता है ? हालांकि, चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि यह सर्वे नागरिकता का नहीं है, केवल मतदाता सूची का हो रहा है ! लेकिन सिर्फ कहने से थोड़ी कुछ होता है सैद्धांतिक तौर पर सर्वे के बाद मतदाता सूची से कटने वाले नाम देश के नागरिक भी नहीं रह सकते हैं ? सवाल यह भी है कि जिन नागरिकों को बताया जा रहा है कि वह नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश के हैं, तो क्या उन्हें उनके देश भेजने का कोई उपाय किया जा रहा है ? यह सवाल ऐसे हैं जिनका जवाब जनता को मिलना ही चाहिए !

बिहार में लगभग 20 साल से नीतीश कुमार जी मुख्यमंत्री हैं ! 11 साल से लगभग नरेन्द्र मोदी जी देश के प्रधानमंत्री हैं, तो इनकी सरकारों की भी जिम्मेदारी है कि दूसरे देशों से लोग आ कैसे गए और जिन लोगों ने उन्हें आने दिया उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई ? सिर्फ यह कहने से काम नहीं चलेगा कि मतदाता सूची में गड़बड़ी है ! मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार लगभग 35 लाख मतदाताओं का नाम सूची से खारिज किया जा रहा है ! यह बिल्कुल सही है कि जिनके पास वैध कागजात नहीं है उन्हें मतदान का कोई अधिकार नहीं है ! लेकिन यह भी प्रश्न उठता है कि ऐसे लोगों ने पिछले कई चुनाव में मतदान किया है ! सिर्फ सर्वे कर उनका नाम सूची से हटा देना की काफी है ! जिसने इन लोगों का नाम सूची में शामिल करवाया, क्या उन अधिकारियों को भी दंडित नहीं किया जाना चाहिए ?

चुनाव आयोग के अनुसार अब तक 83.66% मतदाताओं ने फॉर्म भर दिए हैं, 11.82% मतदाताओं का फॉर्म भरना बाकी है ! रिपोर्ट के अनुसार 12,55,000 के करीब मतदाता मृत पाए गए जबकि 2.2% मतदाता यानी की 17 लाख 37 हज़ार 337 स्थानांतरित हो गए हैं ! आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 35 लाख 69 हज़ार 437 मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए हैं ! मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बिहार के सीमांचल जिलों कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज और अररिया में आधार की संख्या आबादी से करीब 120% से ज्यादा है ! इन आंकड़ों ने तो जिम्मेदार लोगों के कान खड़े कर दिए हैं ! ऐसा दावा किया जा रहा है कि इन चारों जिलों में एक विशेष वर्ग की आबादी की संख्या अधिक है !

सर्वे को लेकर राजनीति गर्म है ! विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस ने इसके लिए आंदोलन किया, रैली की और चेतावनी दी कि सही मतदाताओं का नाम सूची से काटना आयोग को महंगा पड़ सकता है ! उन्होंने चुनाव आयोग को भारतीय जनता पार्टी के लिए काम करने का आरोप भी लगाया ! राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता और बिहार विधानसभा में नेता विरोधी दल तेजस्वी यादव ने तो यहां तक कह दिया कि देश के लोकतंत्र से मजाक किया जा रहा है, मतदाताओं का नाम वोटर लिस्ट से जबरदस्ती काटा जा रहा है ! यह लोकतंत्र के भविष्य के लिए खतरा है ! जबकि भारतीय जनता पार्टी आयोग की कार्यवाही को न्याय संगत बता रही है ! अब देखना है कि आयोग की यह कार्रवाई चुनाव परिणाम को कितना प्रभावित करती है !

विपक्ष, सर्वे की इस कार्रवाई के समय पर सवाल उठा रहा है, विपक्ष का कहना है कि अगर सर्वे करना ही था तो चुनाव के इतने नजदीक नहीं करना चाहिए था ! बिहार में विधानसभा का चुनाव नवंबर में प्रस्तावित है ! विपक्ष का कहना है कि आनन फानन में कराया गया यह सर्वे अपने आप में निष्पक्षता को लेकर सवाल खड़ा कर रहा है !

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