
सूर्योदय भारत समाचार सेवा, लखनऊ : बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में मंगलवार 15 जुलाई को हिन्दी प्रकोष्ठ की ओर से ‘राजभाषा हिन्दी और उसका कार्यान्वयन, तिमाही रिपोर्ट भरने की समस्या का निस्तारण एवं कार्यालय में प्रयोग कृत्रिम मेधा (Al) की उपयोगिता’ विषय पर एकदिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने की।

मुख्य वक्ता के तौर पर लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी एवं पत्रकारिता विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित उपस्थित रहे। इसके अतिरिक्त मंच पर कुलसचिव डॉ. अश्विनी कुमार सिंह, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के सहायक निदेशक, राजभाषा श्री अभिषेक कुमार सिंह एवं कार्यशाला संयोजक एवं सहायक निदेशक, राजभाषा बीबीएयू डॉ. बलजीत कुमार श्रीवास्तव मौजूद रहे। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन एवं बाबासाहेब के छायाचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ हुई। विश्वविद्यालय कुलगीत के पश्चात आयोजन समिति की ओर से मंचासीन अतिथियों को अंगवस्त्र एवं स्मृति चिन्ह भेंट करके उनके प्रति आभार व्यक्त किया गया। सर्वप्रथम कुलसचिव डॉ. अश्विनी कुमार सिंह ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों का स्वागत किया। इसके पश्चात कार्यक्रम संयोजक डॉ. बलजीत कुमार श्रीवास्तव ने सभी को कार्यक्रम के उद्देश्य एवं रुपरेखा से अवगत कराया। मंच संचालन का कार्य श्रीमती संध्या दीक्षित द्वारा किया गया।

विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि दैनिक जीवन एवं विश्वविद्यालय संबंधी समस्त गतिविधियों में हिंदी भाषा को प्राथमिकता देना अत्यंत आवश्यक है। हिंदी में हस्ताक्षर, साइन बोर्ड, कार्यालयीन कार्य, आपसी संवाद तथा विभिन्न पाठ्यक्रमों का संचालन न केवल हमारी मातृभाषा को सशक्त बनाता है, बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता की पुष्टि भी करता है। मातृभूमि और मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं हो सकता क्योंकि यही हमारी मौलिक सोच और सांस्कृतिक मूल्यों की जड़ है। आज जहाँ एक ओर पहनावे, खानपान एवं संस्कारों पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, वहीं दूसरी ओर इसी कारण भारतीयता का विकास भी अवरुद्ध हुआ है। हमें ‘लोकल फॉर वोकल’ की भावना को प्रोत्साहित करना होगा, जिससे भारत आत्मनिर्भरता की दिशा में सशक्त रूप से आगे बढ़ेगा। साथ ही अर्थव्यवस्था को समझते हुए उद्यमिता को बढ़ावा देना होगा, जो न केवल आर्थिक सशक्तिकरण का माध्यम बनेगा, बल्कि हिंदी भाषा को भी नई ऊँचाइयाँ प्रदान करेगा।
लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी एवं पत्रकारिता विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने अपने विचार रखते हुए कहा कि हमें मातृभाषा और राजभाषा के संबंध में अपने ज्ञान को संशोधित करने एवं उसे अद्यतन बनाए रखने की आवश्यकता है, क्योंकि ये दोनों भिन्न अवधारणाएं हैं जिनकी परिभाषा, उद्देश्य और नियमावली भी अलग-अलग होती हैं। इसके अतिरिक्त कार्यालयीन गतिविधियों में प्रत्येक कर्मचारी को राजभाषा से संबंधित नियमावली, अधिनियम, प्रचलित प्रक्रियाएं तथा इसके प्रयोग की सीमाओं का स्पष्ट रूप से ज्ञान होना चाहिये। साथ ही कार्यालयीन कार्यों में पत्राचार, टिप्पणी लेखन एवं प्रारूपण (ड्राफ्टिंग) जैसी गतिविधियों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है, जिनमें राजभाषा का शुद्ध एवं प्रभावी प्रयोग किया जाना चाहिए।

भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के सहायक निदेशक, राजभाषा श्री अभिषेक कुमार सिंह ने बताया कि कार्यालयीन कार्यप्रणाली में टिप्पण लेखन, प्रारूपण तथा विभिन्न प्रकार के पत्रों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है, क्योंकि ये सभी तत्व प्रशासनिक संप्रेषण की मूल आधारशिला होते हैं। टिप्पण लेखन के माध्यम से कर्मचारी अपनी राय, सुझाव या निष्कर्ष प्रस्तुत करता है, वहीं प्रारूपण के माध्यम से किसी दस्तावेज़ या पत्र का विधिसम्मत प्रारूप तैयार किया जाता है, जिसे उच्चाधिकारियों से अनुमोदन प्राप्त होता है। विभिन्न प्रकार के पत्रों का निर्माण कार्य के प्रकार, स्तर और आवश्यकता के अनुसार किया जाता है, जो शासन एवं प्रशासन की पारदर्शिता और कार्यदक्षता को सुनिश्चित करते हैं। आज के डिजिटल युग में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग कार्यालयीन कार्यों में तेजी से बढ़ रहा है। इससे कार्यों की गति, सटीकता और उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। अतः आज के समय में पारंपरिक कार्यालयीन प्रक्रियाओं के साथ-साथ तकनीकी उन्नति, विशेषकर AI के प्रभावी उपयोग को भी अपनाना अनिवार्य हो गया है, जिससे कार्यालयीय दक्षता एवं पारदर्शिता को एक नई दिशा मिलती है।
कुलसचिव डॉ. अश्विनी कुमार सिंह ने कहा कि जिस प्रकार हम सोचते हैं, यदि उसी रूप में अर्थात हिंदी में ही हमारी अभिव्यक्ति हो, तो वह अधिक स्वाभाविक, प्रभावशाली और स्पष्ट होती है। अपने विचारों को मातृभाषा में व्यक्त करना न केवल संप्रेषण को सरल बनाता है, बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ाता है। इसलिए हमें हिंदी का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए, विशेषकर शैक्षणिक, सामाजिक और कार्यालयीन कार्यों में। हिंदी का समृद्ध उपयोग ही इसकी सशक्त उपस्थिति सुनिश्चित करेगा।
अंत में डॉ. बलजीत कुमार श्रीवास्तव ने धन्यवाद ज्ञापित किया। समस्त कार्यक्रम के दौरान विभिन्न संकायों के संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, शिक्षकगण, गैर शिक्षण कर्मचारी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।