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यादों के झरोखों से…: “हिमालय के गांधी….”

श्री सुंदर लाल बहुगुणा, प्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं चिपको आंदोलन के प्रणेता की पुण्य तिथि 21 मई पर विशेष

सूर्योदय भारत समाचार सेवा : ……ये उनकी अपनी अद्भुत शख्सियत ही कही जाएगी कि मात्र 21 वर्ष की उम्र में जब वे 29 जनवरी, 1948 को टिहरी से चलकर नई दिल्ली में महात्मा गांधी से मिले थे तो महात्मा गांधी ने उनकी पीठ थपथपाते हुए कहा था कि- “तुमने मेरी अहिंसा को हिमालय पर भी उतार दिया है।”

    जी हां, मैं बात कर रहा हूँ विराट व्यक्तित्व वाले पद्म विभूषण श्री सुंदर लाल बहुगुणा जी की, जिनका 94 वर्ष की उम्र  आज ही के दिन वर्ष 2021 में देहावसान हो गया था।

    विश्व प्रसिद्ध 'चिपको आंदोलन' के प्रणेता और मशहूर पर्यावरणविद, प्राणवायु के प्रहरी, पर्यावरण सरंक्षण के जनक, वृक्षमित्र....जाने कैसे-कैसे अलंकारणों से विभूषित यह शख्सियत किसी परिचय का मोहताज़ नहीं है। जिस किसी ने भी वर्ष 1980-2000 के आस-पास किसी न किसी तरह की प्रतियोगी परीक्षाओं आदि की थोड़ी-बहुत तैयारी की होगी, उन्होंने तत्समय चिपको आंदोलन, पर्यावरण संरक्षण और सुंदर लाल बहुगुणा जी को निःसंदेह पढ़ा ही नहीं, उनको जिया भी होगा।

    एक संस्मरण मैं भी साझा कर रहा हूँ। 14 जून, 1995 की बात है। दिन बुधवार था। सुबह के करीब 10 बजे थे। इलाहाबाद उच्च न्यायालय, इलाहाबाद का कोर्ट न0 4 या 5, ठीक से याद नहीं, खचाखच भरा था। मैंने भी सुबह के अख़बार में पढ़ा हुआ था कि आज चिपको आंदोलन के प्रणेता किसी न्यायिक/पर्यावरणीय कार्य से उक्त कोर्ट में उपस्थित रहेंगे। चूंकि, मैं भी बहुगुणा जी से बावस्ता रखता था एवं तत्समय उच्च न्यायालय, इलाहाबाद की सेवा में कार्यरत था। अतः एक विशेष उत्सुकता के साथ मैं भी उनके दर्शनार्थ कोर्ट रूम  में पहुंच गया। देखा कि उस समय के अख़बारों की सुर्खियां बनने वाले संत पुरुष बहुगुणा जी कोर्ट में बैठे हुए थे। लगभग 68 वर्षीय उनकी तपस्वी काया, उनकी सादगी भरी भेषभूषा, उनके चेहरे का तेज और उस पर बढ़ी हुई साधुनुमा सफेद दाढ़ी, सर पर  साफेनुमा सफेद टोपी/अंगौछा.....सभी स्वयं उनके विराट व्यकित्व को बयां कर रहे थे। मैंने लपककर उनके पैर छुए, उनकी कुशलक्षेम जानी और अपना संक्षिप्त परिचय दिया। 10-15 मिनट उनसे चिपको आंदोलन, पर्यावरण आदि मुद्दे पर बातें की। बातों-बातों में मैंने उनसे अनुनय किया कि- 'बाबा आप हमें क्या संदेश देना चाहेंगे?'  उनका कुछ प्रत्युत्तर मिलता, इसके पहले ही हमने अपने साथ रखी एक नोटबुक खोलकर उनके सामने रख दी। उन्होंने अपने कुर्ते की जेब से एक साधारण-सी कलम निकाली और मेरे नोटबुक के पन्ने पर सुंदर और स्वच्छ अक्षरों में, तारीख़ और अपने हस्ताक्षर सहित, लिखा;

"गंगा को अविरल बहने दो।
 गंगा को निर्मल रहने दो।।

   आज लगभग 28 वर्षों के बाद उस विशेष दिन को याद करते हुए मैं उन्हीं स्मृतियों में खो गया हूँ।...सचमुच पर्यावरण को स्थायी संपत्ति मानने वाला यह महामानव आज "पर्यावरण का गांधी" बन गया है।...आज जब भी मैं कहीं गंगा (नदी) को देखता हूँ तो मुझे उक्त लाइने बरबस ही याद हो उठती हैं, सजीव हो उठती हैं और मेरे सामने बहुगुणा जी जीवन्त हो उठते हैं
     अंत में, उन्हीं के ध्येय वाक्य के साथ मैं उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

“क्या हैं जंगल के उपकार,
मिट्टी, पानी और बयार।
मिट्टी, पानी और बयार,
ज़िन्दा रहने के आधार।।”

    सचमुच एक पर्यावर्णीय-युग और उसके चितेरे का अंत हो गया, लेकिन हम सभी उन्हें याद रखेंगे और उनकी जलाई अलख को आगे बढ़ाने का पूरा प्रयास करेंगे। इन्हीं भावों के साथ उन्हें शत-शत नमन।



     -रतन कुमार श्रीवास्तव 'रतन

(लेखक उत्तर प्रदेश सचिवालय सेवा के अधिकारी हैं)


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