
सूर्योदय भारत समाचार सेवा, लखनऊ : बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में शुक्रवार 8 अगस्त को इतिहास विभाग, बीबीएयू एवं महुआ डाबर म्यूजियम के संयुक्त तत्वावधान में काकोरी शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित ’19वें अयोध्या फिल्म फेस्टिवल’ का समापन हुआ । समापन सत्र की अध्यक्षता डीन ऑफ अकेडमिक अफेयर्स प्रो. एस. विक्टर बाबू ने की। मुख्य अतिथि के तौर पर न्यायमूर्ति अनिल वर्मा उपस्थित रहे। इसके अतिरिक्त मंच पर पूर्व सूचना आयुक्त, उत्तर प्रदेश श्रीमती किरण बाला, मुम्बई से आये फिल्म डायरेक्टर प्रो. मोहन दास, इतिहास विभाग, बीबीएयू के विभागाध्यक्ष प्रो. वी.एम. रवि कुमार काकोरी घटनाक्रम से जुड़े क्रांतिकारी सचिन्द्र नाथ बख्शी की पोत्री सुश्री मीता बख्शी एवं कार्यक्रम समन्वयक डॉ. सुदर्शन चक्रधारी उपस्थित रहे। सर्वप्रथम आयोजन समिति की ओर से मंचासीन अतिथियों को पुष्पगुच्छ एवं पौंधा भेंट करके उनका स्वागत किया गया। इसके पश्चात प्रो. वी.एम. रवि कुमार ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों का स्वागत किया और सभी को कार्यक्रम के उद्देश्य एवं रुपरेखा से अवगत कराया। मंच संचालन का कार्य डॉ. सुदर्शन चक्रधारी द्वारा किया गया।

मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति अनिल वर्मा ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि सिनेमा समाज को आगे बढ़ाने का एक सशक्त माध्यम है, जो मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा और जागरूकता भी प्रदान करता है। जैसे हम अन्य माध्यमों से ज्ञान अर्जित करते हैं, वैसे ही फिल्मों से भी महत्वपूर्ण सीख ली जा सकती है। इन्होंने बताया कि सार्थक और प्रेरणादायक सिनेमा न केवल विचारों को नई दिशा देता है, बल्कि हमें वास्तविक जीवन के लिए भी तैयार करता है। इनका कहना था कि आज हम अपने क्रांतिकारियों के बलिदान और संघर्ष को कहीं न कहीं भूलते जा रहे हैं, परंतु फिल्मों के माध्यम से उन स्वर्णिम पलों और वीर गाथाओं को पुनः जीवंत किया जा सकता है।

डीन ऑफ अकेडमिक अफेयर्स प्रो. एस.विक्टर बाबू ने चर्चा के दौरान कहा कि एक समय था जब लोग सिनेमा को केवल मनोरंजन का साधन मानते थे, लेकिन समय के साथ इसकी परिभाषा और प्रभाव दोनों ही बदल गए। फिल्मों के जरिए सामाजिक बुराइयों पर चोट की जाती है, प्रेरणादायक कहानियां सुनाई जाती हैं और इतिहास के गौरवशाली पन्नों को जीवंत किया जाता है। इन्होंने बताया कि चाहे फिल्में किसी भी भाषा में बनी हों, वे अपनी भावनाओं, कहानियों और संदेशों के जरिए लोगों को जोड़ने का काम करती हैं।
श्रीमती किरण बाला ने काकोरी कांड के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह केवल स्वतंत्रता संग्राम का एक अध्याय नहीं, बल्कि साहस, बलिदान और देशभक्ति की अमर गाथा है।
इसके अतिरिक्त सुश्री मीता बख्शी और शाह आलम राणा ने काकोरी घटनाक्रम से संबंधित क्रांतिकारियों के योगदान पर अपने विचार रखे।

कार्यक्रम के दौरान काकोरी एक्शन शताब्दी वर्ष पर आधारित पुस्तक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। इसके अतिरिक्त देश- विदेश से आयी फिल्मों की स्क्रीनिंग भी की गयी। अंत में तीन दिवसीय कार्यक्रम के दौरान आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं जैसे पेंटिंग, प्रश्नोत्तरी एवं नृत्य आदि प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कार एवं प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। साथ ही काकोरी घटनाक्रम से संबंधित पुस्तक ‘काकोरी: क्रांति की पटरियों पर लिखा इतिहास’ का विमोचन भी किया गया। इसके अतिरिक्त देश-विदेश से आई फिल्मों को सराहते हुए उन्हें मंच पर विशेष रूप से प्रदर्शित किया गया और उत्कृष्ट रचनात्मकता, विषय-वस्तु ,समाज पर प्रभाव एवं अन्य श्रेणियों के आधार पर पुरस्कृत भी किया गया। कार्यक्रम के अंत में मंचासीन अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट करके उनके प्रति आभार व्यक्त किया गया।
अंत में शाह आलम राणा ने धन्यवाद ज्ञापित किया। समस्त कार्यक्रम के दौरान विभिन्न संकायों के संकायाध्यक्ष, विभागाध्यक्ष, शिक्षकगण, महुआ डाबर म्यूजियम के अधिकारी एवं कर्मचारी, शोधार्थी एवं विभिन्न विद्यालयों एवं बीबीएयू के विद्यार्थी मौजूद रहे।