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सेहत से है प्यार तो पत्तल में शुरु करें खाना, मिलेगा हर बीमारी का इलाज

घर पर या बाहर हो रहे फंक्शन के लिए प्लास्टिक या थर्माकोल की प्लेट का इस्तेमाल किया जाता है। जो कि न केवल हमारे पर्यावरण के लिए अच्छी नहीं हैं, बल्कि हमारे शरीर को भी कई तरह के नुकसान पहुंचाती हैं। इन प्लेट्स ने धीरे धीरे पुराने समय से प्रयोग की जा रही पत्तल की प्लेटों का स्थान ले लिया हैं। पत्तल में खाने से हमारे शरीर को कई तरह के फायदे मिलते है।

भारत में शुरु से विभिन्न वनस्पती से के पत्तों से बनी पत्तल की प्लेटों का इस्तेमाल किया जाता रहा हैं। अब यह ट्रेंड विदेशों में बढ़ रहा लेकिन वहीं अपने देश में इसे भूला जा रहा है। पहले किसी भी तरह का फंक्शन क्यों न हो अतिथि को पत्तल में ही खाना परोसा जाता था। आज हम भारतीयों को न केवल अपने लिए बल्कि पर्यावरण के लिए अपनी पुरानी आदतों को अपनाने की जरुरत है। पत्तल की प्लेट भी उन्हीं में से एक हैं।

इतिहास
पत्तल यानि की पत्तों में रख कर भोजन करने की परंपरा कब से इसका कोई प्रमाण नहीं है लेकिन एक समय था जब 20 हजार से ज्यादा वनस्पितयों की पत्तियों से पत्तल बनते थे। लेकिन शहर में बढ़ रही आधुनिकता ने इसे खत्म करके रख दिया हैं। प्राचीन समय से ही केले के पत्तों में भोजन करने की परंपरा रही है। शायद इसलिए आज महंगे होटल व रेस्तरा में भी केले के पत्ते पर भोजन रख कर परोसा जाता है। चाहे भारत में यह परंपरा खत्म हो रही है,लेकिन जर्मनी में पत्तल में खाने की परंपरा काफी प्रचलित हो रही है।

पत्तलों की प्लेट से हमारा गहरा रिश्ता
पत्तल पर भोजन खाना न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि इससे हमारे शरीर को भी कई औषधीय गुण मिलते है। जब लोग प्लास्टिक, स्टील या थर्माकोल की प्लेट में खाना खाते है तो उसमें से निकलने वाले कैमिकल हमारे शररी को काफी नुकसान पहुंचाते है। जिससे कैंसर जैसी भयानक बीमारियां होने का खतरा है। वहां पत्तल की प्लेट से नुकसान तो नहीं होता, लेकिन हमें कई तरह के फायदे जरुर मिलते हैं।

हर पेड़ के पत्ते से मिलेगा फायदा
एक पेड़ का हमारे जीवन में जितना फायदा होता है उतना ही फायदा तब मिलता है जब लोग उनके पत्तो में खाना खाते है। अलग अलग पेड़ के पत्तो से बने हुए पत्तल हमारे लिए शररी के लिए काफी फायदेमंद होते है। जिससे हम खुद को स्वस्थ रख सकते है। आईए जानते है कि विभिन्न पेड़ों के पत्तो से हमें क्या फायदा होते है।

केले के पत्ते
केले के पत्ते से बनी पत्तल में चांदी के बर्तन के समान गुण पाए जाते है। इसमें खाना खाने से वहीं फायदा मिलता है जो चांदी के बर्तन में खाने से मिलता हैं।

पलाश के पत्ते
पलाश के पत्तों में खाने से खून में पाए जाने वाली अशुद्धता कम होती है, जिससे इनसे होने वाली बीमारियां भी कम होती हैं। सफेद फूल वाले पलाश के पत्ते में खाने बवासीन यानि पाइल्स के मरीजों को आराम मिलता हैं। यह शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करता हैं।

अमलतास के पत्ते
अमलतास की पत्तियों में भोजन डाल कर खाने से पैरालिसिस व लकवाग्रस्त मरीजों को काफी आराम मिलता हैं।

करंज के पत्ते
करंज की पत्तियों से जोड़ो के दर्द के मरीज को काफी आराम मिलता हैं।

पीपल के पत्ते
पीपल के पत्तों में भोजन करने से मंदबुद्धि बच्चों के इलाज में काफी मदद होती हैं।

पर्यावरण के लिए फायदा
इन्हें बनाने में किसी भी तरह के कैमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता हैं। यह आसानी से गल जाती है जिससे यह पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुंचाती हैं। इनके गलने से जो खाद तैयार होती है वह पर्यावरण के भी अच्छी होती हैं। पत्तल बनाने के लिए पत्तो की जरुरत होती है, इससे अधिक से अधिक पेड़ उगाए जाएगें। जिससे पर्यावरण में आक्सीजन की मात्रा बढ़ेगी।

सरकार भी कर रही है पहल
पश्चिम बंगाल में शाल के पत्तों से बने पत्तल के कारोबार को बचाने के लिए मांग की गई हैं। जिससे सरकार भी इस काम को बचाने के लिए प्रयास कर रही हैं। यह सस्ता होने के साथ पर्यावरण व शरीर दोनों के लिए बहुत ही लाभदायक होता है। इतना ही नहीं यह पानी की बचत करने में काफी मददगार होती है। क्योंकि इसे प्रयोग कर फेंक दिया जाता हैं।

आधुनिक व्यापार का असर
पत्तल की प्लेट न केवल हमारे पर्यावरण के लिए बल्कि लाखों मजदूरों की आजीविका से जुड़ी हुई हैं। इससे बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड व राजस्थान जैसे राज्यों के लोगों को रोजगार मिलता था। लेकिन धीरे धीरे पत्तल के कम होते प्रयोग के कारण इनका व्यापरा भी कम होता गया। इसकी जगह चीनी व मिट्टी के साथ प्लास्टिक व थर्माकोल के समान ने ले ली।

थर्माकोल व प्लास्टिक के नुकसान
1. थर्माकोल की प्लेट में मौजूद कैमिकल हमारी पाचन क्रिया पर प्रभाव डालते है, जिससे कैंस की संभावना रहती हैं।
2. इसका पर्यावरण से काफी नुकसान पहुंचता है, क्योंकि यह पर्यावरण में जल्दी गलते व सड़ते नही हैं।
3. डिस्पोजेबल गिलास में पाए जाने वाले केमिकल छोटी आंत पर बहुत असर डालते हैं।

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