लखनऊ: इराक के कद्दावर नेता और शिया मौलवी मुक्तदा अल-सद्र के नेतृत्व वाले गठबंधन ने चुनाव जीत लिया है। यद्यपि उन्हें पूर्ण बहुमत नहीं मिला है, लेकिन इस जीत को अमेरिका और पश्चिमी ताकतों के लिए झटके के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि इन देशों ने इन चुनावों में शुरू से हैदर अल-अबादी को समर्थन दिया है। दूसरी तरफ अल-सद्र अपने देश में शिया बहुल ईरान के दखल के खिलाफ भी रहे हैं। हालांकि सद्र खुद देश के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते हैं क्योंकि वह प्रत्याशी के बतौर चुनाव में खड़े नहीं हुए हैं।
सद्र के गठबंधन को बहुमत हासिल नहीं होने के चलते फिलहाल सत्ता की दौड़ में चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। किसी भी गठबंधन को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के चलते देश में गठबंधन सरकार की संभावनाएं ही बनती दिख रही हैं। शिया नेता और मौलवी मुक्तदा अल-सद्र ने खुद को इस चुनाव में पीएम की दौड़ से बाहर रखा है इसलिए किंगमेकर में उनकी भूमिका सबसे अहम होगी। लेकिन यदि नई सरकार के गठन की प्रक्रिया 90 दिन में पूरी नहीं हुई तो निराशाजनक प्रदर्शन के बावजूद हैदर अल-अबादी पीएम बन सकते हैं।
इराक में शिया धर्मगुरु और नेता बनकर उभरने वाले मुक्तदा अल-सद्र के रिश्ते शुरुआत में यहां के आतंकी संगठनों से रह चुके हैं। अमेरिकी हमले के बाद से ही मुक्तदा अल-सद्र के संगठन ने अमेरिकी सैनिकों को निशाना बनाया है। इराक में 2003 में अमेरिका के आक्रमण और तत्कालीन तानाशाह सद्दाम हुसैन के अपदस्थ होने और मारे जाने के बाद से ही सद्र के उग्रवादी संगठन ने इराक में पैर जमाने शुरू कर दिए। लेकिन बाद में उन्होंने गरीबों के मसीहा और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में खुद की पहचान बनाई जिसका असर चुनाव परिणामों में दिखाई दे रहा है।
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