लखनऊ: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उन्होंने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की। इसके बाद मोदी ने उन्हें इस अनौपचारिक मुलाकात के लिए न्योता देने पर पुतिन को धन्यवाद दिया। प्रधानमंत्री बनने के बाद यह उनका चौथा रूस दौरा है। इससे पहले मोदी 27-28 अप्रैल को चीन के राष्ट्रपति से वुहान शहर में भी अनौपचारिक मुलाकात कर चुके हैं। इस दौरान दोनों के बीच कई अहम मुद्दों पर बात हुई थी। विदेश मामलों के जानकार रहीस सिंह ने भास्कर से बातचीत में बताया कि एशिया की इन तीन ताकतों की बढ़ती नजदीकी अच्छे संकेत हैं। इस पर दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं।
नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत और रूस पुराने दोस्त रहे हैं। रूस ने भारत के एससीओ के सदस्य देशों में शामिल होने में अहम भूमिका निभाई है। भारत और रूस इंटरनेशनल नार्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर और ब्रिक्स में साथ काम कर रहे हैं।
आज पूर्व, दक्षिण-पूर्व, खाड़ी देशों को देखें तो भारत पर लोगों का एक ऐसा भरोसा कायम होता जा रहा है कि वह ताकत हासिल करके भी इसका गलत इस्तेमाल नहीं करेगा। ऐसे में हर देश उसका साथ चाहेगा। चीन के साथ भारत की अनौपचारिक वार्ता हो चुकी है, रूस के साथ वार्ता होने वाली है। जो भारत का चीन-रूस के साथ ट्राईएंगल होगा, उसकी दुनिया में चर्चा जरूर होगी। इसे एशिया में एक नई राजनीतिक व्यवस्था के रूप में देख सकते हैं।
चीन के साथ मुलाकात के बाद चीनी अखबारों में भारत के साथ बेहतर होते संबंधों की बात लिखी थी। दरअसल अनौपचारिक वार्ता किसी ट्रीटी या एग्रीमेंट का हिस्सा नहीं बनती। बातचीत के लिए एक बड़ा स्पेस बनता है। इससे हम कूटनीतिक स्थिति को बेहतर बना सकते हैं। लंबे वक्त से भारत, रूस से कटा-कटा है। जितना हम अमेरिका के करीब आते गए, रूस दूर होता गया। आज दो पोल बन गए हैं, एक- एशिया-पैसिफिक में जापान, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका। दूसरा- गल्फ में चीन, रूस, सीरिया, ईरान है। भारत को इसमें बैलेंस बनाना है, क्योंकि उसे किसी से लड़ना नहीं है। लिहाजा प्रतिनिधिमंडल के साथ जाने के बजाय अनौपचारिक वार्ता करना ज्यादा सही लगता है। इसमें मुद्दे तय नहीं होते। लेकिन जब देशों के प्रमुख बैठते हैं तो बातचीत का माहौल तैयार होता है।
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