नई दिल्ली। बलात्कारी राम रहीम को 20 साल की सजा का ऐलान होने के बाद इस प्रकरण का श्रेय लेने की होड़ मची हुयी है। हालाँकि अभी तक जो पुख्ता जानकारी थी कि साध्वी ने उस समय के पीएम अटल विहारी बाजपेयी को एक गुमनाम पत्र लिखकर पूरे प्रकरण की जानकारी देकर सीबीआई जाँच की मांग की थी। लेकिन इस केस को सीबीआई के जिस अफसर ने डील किया था उसके मुताविक पीएम मोदी की बजह से नहीं अपितु पीएम मनमोहम सिंह की ईमानदार छवि के कारण ही सीबीआई ने इस केस को इस अंजाम तक पहुँचाया है। बरना दोनों राज्यों के सांसदों का इतना दबाब रहा कि सीबीआई चाहकर भी जाँच को आगे नहीं बढ़ा पा रही थी।
दरअसल, इस मामले की पूरी जांच सीबीआई के रिटायर डीआईजी एम. नारायणन ने की है। अब नारायणन का कहना है कि तब राम रहीम के खिलाफ जांच नहीं करने को लेकर बहुत दबाव था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उस सियासी दबाव को नजरंदाज करते हुए जांच जारी रखने को कहा। सीबीआई की निष्पक्ष जांच का ही नतीजा है कि आज राम रहीम सलाखों के पीछे है।
बकौल नारायणन, तब प्रधानमंत्री ने सीबीआई को फ्री हैंड दिया था। वे पूरी तरह जांच एजेंसी के साथ थे। उनके हमें स्पष्ट निर्देश थे कि हम कानून के अनुसार चलें। उन्होंने दोनों साध्वियों के लिखित बयान पढ़ने के बाद कहा कि पंजाब और हरियाणा के सांसदों के दबाव में आने की कोई जरूरत नहीं।
नारायणन ने यह भी कहा कि दोनों राज्यों के सांसदों से इतना ज्यादा दबाव था कि मनमोहन सिंह ने तब के सीबीआई चीफ विजय शंकर को बुलाया और पूरे मामले की जानकारी ली। उसके बाद से सीबीआई ने अपना काम बिना किसी दबाव के काम किया।
नारायणन ने बताया कि केस में सबसे बड़ी चुनौती आरोपी साध्वी को तलाशना था, क्योंकि तब उसका कोई अता-पता नहीं था। कड़ी मश्ककत के बाद उन्होंने 10 साध्वियों का पता लगाया, लेकिन उनमें से दो ही बोलने को राजी हुईं। हालांकि ये दो गवाहियां ही केस में सबसे अहम कड़ी साबित हुईं।
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