नई दिल्ली : गुजरात विधान सभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए हार्दिक पटेल जीत की चाभी साबित हो सकते हैं. हालांकि, जब तक वो खुलकर किसी के समर्थन का ऐलान नहीं कर देते, तब तक हार्दिक पटेल दोनों बड़ी पार्टियों के लिए खतरा बने रहेंगे. मगर जैसे ही वो कांग्रेस को समर्थन का ऐलान करेंगे, बीजेपी के लिए सिरदर्द जरूर बन सकते हैं. अब सवाल उठता है कि पटेल समुदाय के लिए आरक्षण की मांग करने वाले युवा नेता हार्दिक पटेल आखिर क्यों गुजरात में अहम भूमिका निभा रहे हैं, इसकी पड़ताल करने की जरूरत है. गुजरात में पटेल समुदाय 12 से 15 फीसदी की जनसंख्या में आते हैं, इसलिए हर पार्टी के लिए इस समुदाय को लुभाना राजनीतिक रूप से काफी फायदेमंद है.
गुजरात में पटेल समुदाय चुनावी दृष्टिकोण से काफी अहम हैं. न सिर्फ जनसंख्या के हिसाब से बल्कि वहां के छोटे-मोटे उद्योंगों में भी इस समुदाय का काफी दबदबा रहा है. इसलिए सबसे पहले हमें ये जानने की जरूरत है कि आखिर ये पटेल हैं कौन और ये इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं. दरअसल, गुजरात में 12 से 15 फीसदी लोग पटेल समुदाय से आते हैं. पटेल में भी कई उप जातियां हैं. इतना ही नहीं, इस पटेल वर्ग में ओबीसी भी हैं, जिन्हें अंजना और कच्छ कहा जाता है. हालांकि, पटेल में कुल चार उप जातियां हैं.
आरक्षण की मांग में 2015 में हार्दिक पटेल ने जुलाई-अगस्त में उन्होंने विशाल रैलियां की. 25 अगस्त 2015 को उन्होंने बड़ा आंदोलन किया. कई जगह दंगे हुए. हार्दिक पटेल पर देशद्रोह का आरोप लगा और वो जेल भी गये. हालांकि, वो अभी जमानत पर बाहर हैं. अभी गुजरात में युवा पटेल नौकरियों की समस्या से जूझ रहे हैं. मगर हार्दिक पटेल से बीजेपी को सबसे बड़े खतरे का एहसास 2015 में लोकल निकाय यानी कि जिला पंतायत के परिणाम सामने आने के बाद दिखी. इस लोकल निकाय चुनाव में बीजेपी को वोट प्रतिशत में झटका लगा. हार्दिक पटेल ने जिस तरह से गुजरात में एंटी बीजेपी माहौल बनाया, उसने वोट प्रतिशत में भाजपा को पिछली चुनाव के मामले में पीछे धकेल दिया. हालांकि, इस मर्तबा कांग्रेस वोट प्रतिशत में भाजपा से आगे रही.
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