Breaking News

बुंदेलखंड में तिल उत्पादन बढ़ाने को मिले उन्नत बीज

बुंदेलखंड में तिल उत्पादन बढ़ाने के लिए ऑल इंडिया कॉर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट (एआईसीआरपी) के तहत कम लागत वाली प्रजाति रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय को दी गई है। बुंदेलखंड के तीन समेत चार जनपदों के 50 किसानों के खेतों में प्रथम पंक्ति प्रदर्शन के जरिए किसानों के देशी बीजों के समानांतर उन्नत बीजों की बुवाई कराई जाएगी। बाद में उत्पादन का आंकलन किया जाएगा।
बुंदेलखंड में तिलहन मुख्य फसल है। कम उपजाऊ भूमि एवं मृदा में पोषक तत्व, पर्याप्त नमी की कमी होने से यहां तिलहन की उत्पादकता कम है। ऐसी स्थिति में कम लागत वाले उन्नत बीज का उपयोग करके लघु व सीमांत किसान लाभान्वित हो सकते हैं। एआईसीआरपी के तहत मिले तिल के उन्नत बीज की प्रथम पंक्ति प्रदर्शन के जरिए चार जनपदों झांसी, ललितपुर, जालौन के अलावा फतेहपुर में बुवाई करानी है। सभी जनपदों से 50 किसानों का चयन किया जाएगा। किसानों को बीज के साथ खाद भी दी जाएगी। उन्नत बीजों को किसानों द्वारा लगाए जा रहे लोकल बीजों के समानांतर खेतों में बुवाई कराई जाएगी। इसके बाद किस बीच से कितना उत्पादन हुआ, इसका आंकलन होगा।
प्रथम पंक्ति प्रदर्शन से संबंधित जानकारियों के लिए किसान कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. मीनाक्षी आर्य, डॉ. अंशुमान सिंह, डॉ. मनोज कुमार सिंह, डॉ. मधुलिका पांडेय, डॉ. अभिषेक से संपर्क कर सकते है।

खेती को मिल है सकती नई दिशा
एआईसीआरपी के तहत मिले कम लागत वाले उन्नत बीज बुंदेलखंड में तिल की खेती को नई दिशा दे सकते हैं। जल्द ही 50 किसानों का चयन किया जाएगा। ताकि, बुवाई भी शुरू हो सके। इसके काफी सकारात्मक परिणाम आने की संभावना है।
– प्रो. अरविंद कुमार, कुलपति, कृषि विश्वविद्यालय।

बुवाई के लिए ध्यान दें किसान
कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बताया कि किसान ऐसी प्रजातियों का चयन करें जो सीजन, स्थान, बीज का रंग एवं पकने की अवधि पर निर्भर करें। बुंदेलखंड में सफेद बीज वाली प्रजाति की मांग अधिक है। यह प्रजाति निर्यात के उद्देश्य से भी अच्छी है। उन्नत प्रजातियां देशी प्रजातियाें की तुलना में 24 से 147 फीसदी अधिक उपज देती हैं। छोटे संम्पुट वाले बीजों के अंकुरण मध्यम और बड़े संम्पुट से चयनित बीजों की तुलना में ज्यादा होता है। बुंदेलखंड के लिए अनुमोदित प्रजातियां टी-78, शेखर, प्रगति, टी-4, एमटी-75, आरटी-46, रामा, एन-32, जेटी-7, टीकेजी-22, टीकेजी-55 हैं। खेत में गहरी जुताई करने से हॉक मॉथ और मृदा जनित बीमारियां कम लगती हैं। बीज जनित बीमारियां जैसे पौध अंगमारी, तना एवं जड़ सड़न को रोकने के लिए बीज को थीरम (0.3 फीसदी) या कार्बेन्डाजीम (0.1 फीसदी) से उपचार करें। अच्छी उपज के लिए सूक्ष्मजीव वर्धन जैसे राइजोबियम, पीएसबी, राइजोबैक्टीरिया या ट्राईकोडरमा से उपचार करें। मानसून आने के तुरंत बाद उर्वरकों के साथ बुआई करने पर उपज अधिक और गाल मक्खी एवं संम्पुट छेदक का प्रकोप कम हो जाता है। जहां फाइलोडी स्थानीयमारी हो, ऐसी जगर बुवाई दो सप्ताह देर से करने पर रोग कम लगता है। बुवाई हमेशा पंक्ति में और दक्षिण व उत्तर दिशा में करें। पंक्ति से पंक्ति की दूरी हमेशा 30 से 45 सेंटीमीटर, पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर रखने पर छिटकवां विधि की तुलना में उपज 25 से 30 प्रतिशत बढ़ जाती है।

Loading...

Check Also

13 विधान परिषद सीटों के चुनाव में उप्र भाजपा ने दलित और महिला उम्मीदवारों से बनायी दूरी !

मनोज श्रीवास्तव / लखनऊ : सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के नारे की हुंकार ...