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केंद्र सरकार का डायग्नॉस्टिक सेंटर्स पर हमला

नई दिल्ली। तेजी से बढ़ रही स्वास्थ्य सेवाओं की मांग में नैदानिक (डायग्नॉस्टिक) उद्योग के लिए कड़े मानकों की जरूरत भी जोर पकड़ती जा रही है। इस क्षेत्र के लिए नियमों की कमी के चलते डायग्नॉस्टिक यानी बीमारी की पहचान करने की गुणवत्ता विशेषज्ञों में भी चिंता का विषय बनी हुई है। इस उद्योग से जुड़े लोग अब इस क्षेत्र के लिए कड़े कानूनों के साथ उनके अनुपालन पर भी जोर देने की मांग कर रहे हैं।

देश भर में एक लाख से ज्यादा डायग्नॉस्टिक लैब काम कर रही हैं। इस क्षेत्र के 80-85 हिस्से पर फिलहाल असंगठित उद्योग का कब्जा है। जबकि करोड़ रुपये के कारोबार वाला यह उद्योग सालाना 17 फीसद की दर से बढ़ रहा है। ऐसे में इस क्षेत्र को नियामक के दायरे में लाने की बात भी उठने लगी है। एसआरएल डायग्नॉस्टिक के सीईओ अरिंदम हलदर ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा,‘इस क्षेत्र में सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए कानून के साथ उसके कड़े अनुपालन की व्यवस्था भी करनी होगी।’

वर्तमान में डायग्नॉस्टिक सेवाओं की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए कोई विशिष्ट कानून नहीं है। इन परिस्थितियों में डॉ. लाल पैथलैब, मेट्रोपोलिस और एसआरएल जैसी कंपनियां स्वेच्छा से नेशनल एक्रिडिएशन बोर्ड फॉर टेस्टिंग एंड कैलिब्रेशन लैबोरेट्रीज (एनएबीएल) और कॉलेज ऑफ अमेरिकन पैथालॉजिस्ट (सीएपी) जैसी संस्थाओं से मान्यता प्राप्त कर काम कर रही हैं। लेकिन असंगठित उद्योग इस मामले में पूरी तरह अनियंत्रित है।

हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में देश भर में मौजूद डायग्नॉस्टिक सेंटरों की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए क्लीनिकल एस्टेबलिशमेंट नियमों में बदलाव का प्रस्ताव किया है। इनमें जांच प्रयोगशालाओं को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है- बेसिक कम्पोजिट, मीडियम और एडवांस्ड। एक दिन में 30 नमूनों की जांच करने वाली प्रयोगशाला को बेसिक कम्पोजिट श्रेणी में रखा जाएगा जबकि 30 से 100 नमूनों की जांच करने वाली प्रयोगशाला को मीडियम वर्ग में रखा जाएगा। 100 से ज्यादा नमूनों की जांच करने वाली प्रयोगशाला को एडवांस्ड श्रेणी में रखा जाएगा और इसके लिए नियम सबसे सख्त होंगे।

प्रस्तावित नियमों के अनुसार डायग्नॉस्टिक सेंटर के लिए अपनी शुल्क संरचना दिखाना भी जरूरी होगा, जिसमें जांच का प्रकार और शुल्क दोनों शामिल होंगे। वर्तमान में जांच के शुल्क सभी प्रयोगशालाओं में बहुत अधिक अंतर है। हलदर कहते हैं कि 2020 तक भारत के डायग्नॉस्टिक क्षेत्र का कारोबार 86 हजार करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है। यह बेहद चिंताजनक है कि इस क्षेत्र का 80-85 फीसद हिस्सा असंगठित क्षेत्र में काम कर रहा है।

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