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विधान सभा में गरजीं राबड़ी

संवाददाता, पटना।

एनडीए नेताओं के बीच अनपढ़ और गंवार कही जाने वाली राबड़ी देवी ने गत सदन में जिस प्रकार बड़ों बड़ों की बोलती बंद की वह आश्चर्यजनक है । शनिवार को बिहार में सदन का आखिरी दिन था । सत्ता पक्ष कोई तार्किक बात करने के बजाए बार बार लालू यादव व राजद को निशाने पर ले रहा था । सदन में उपस्थित पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी ही नही लालू की अर्धांगिनी के रूप में सब सुन रहीं थीं । जब उनके बोलने का अवसर मिला और तो उनके प्रश्न अनुत्तरित ही रहे। सत्ता पक्ष को कोई भी जवाब नहीं सूझा । रेवड़ी यादव ने लालू यादव के फोन मामले पर गरजते हुए कहा कि यहां कितने लोग हैं जो जेल में रहकर फोन पर बात करते रहे हैं। मुझे सब पता है। ये कहते हुए उन्होंने कुछ लोगों की ओर देखा भी लेकिन किसी ने भी उनकी प्रश्नों पर सवाल न उठा कर दबी जुबान में उनकी बातों का समर्थन दिया। अकसर पूर्व मुख्यमंत्री की शिक्षा पर सवलों को भी उन्होंने विराम लगा दिया। अपनी शिक्षा पर उठे सवाल के जवाब में कहा कि वह गांव की हैं। जहां तब स्कूल नहीं हुआ करते थे । अगर तेजस्वी की मां अनपढ़ है तो सदन में बैठे कितने लोगों के नाम बताऊँ जिनकी मां भी अनपढ़ हैं । उनके कामों का मूल्यांकन सरकारी फाइलों से हो, न कि उनकी शिक्षा से ।अंत में भ्रस्टाचार के आरोपों पर उन्होंने कहा कि चारा घोटाला 1990 के पहले 1976 से चल रहा था, जिसकी जांच के आदेश और एफआईआर लालूजी ने करवाई , मगर क्या कारण है कि उससे संबंधी सभी लोग बरी हो गए । तमाम को जमानत मिल गई , लेकिन लालूजी जेल में हैं । फिर उन्होंने कहा कि वे इसलिए जेल में हैं , क्योंकि लालू जी ने गरीबों को आवाज़ और बड़े लोगो के मुकाबले बराबरी की जगह दी । यह सामन्तवादियों से सहन न हुआ । अंत में उन्होंने पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी का नाम ले कर कहा कि उनके दर्जनों मकानों ज़मीनों की फाइलें सरकार के पास हैं । इसे सब जानते हैं । यहां तक कि रविवार को रजिस्ट्री ऑफिस खुलवा कर उन्होंने रजिस्ट्री कराई । इसके अभिलेख सरकार सरकार के पास हैं । इस पर सुशील मोदी सदन में रह कर भी झुठला न कर सके और खीझ कर केवल इतना कह सके कि आप उन संपत्तियों का नाम बता दें तो वह आपको दे देंगे । जवाब में राबड़ी यादव ने उन मकानों के पते भी बता दिए । उनके इस जवाब से पूरा सदन सन्न रह गया ।अब सवाल है कि एक पूर्व सीएम ने सदन में इतने ठोस आरोप लगातीं है फिर भी मीडिया ने इसे खबर को विशेष महत्त्व नहीं दिया । मीडिया तो इस समय किसानों को खालिस्तानी बताने पर तुला हुआ है ।

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