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प्रियंका के सामने महिलाओं का छलका दर्द, बोलीं-दीदी, जिस नाव के पैर छूते थे उसे आंखों के सामने तोड़ डाला

रविवार दोपहर के साढ़े 12 बजे। बसवार गांव का माहौल पूरा बदला हुआ। यमुना किनारे नीम के पेड़ के नीचे निषाद समुदाय की महिलाएं व पुरुष बैठे हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के आते ही सभी टकटकी लगाए देखने लगते हैं। प्रियंका ने हाथ जोड़े तो लोगों ने भी बैठे-बैठे उनका स्वागत किया। नीले रंग के सूट पहने प्रियंका वहां सफेद तौलिया लिपटी कुर्सी पर बैठती हैं, लेकिन बाईं तरफ महिलाओं को देखते ही उनके पास बैठ जाती हैं। 

सिर पर घूंघट और जुबां पर दर्द लिए बैठीं महिलाएं प्रियंका को देखते ही बोल पड़ती हैं। चार फरवरी की दोपहर हुई दास्तां के बारे में एक-एक करके बताने की जल्दी भी रही। प्रियंका ने सबसे पहले वंदना निषाद से पूछा कि क्या हुआ था। सब कुछ बताएं, हम आपकी मदद के लिए आए हैं।

इतना सुनते ही वहां बैठीं महिलाओं की आंखें नम हो गईं। वंदना ने प्रशासन व पुलिस की कार्रवाई के बारे में बताया तो प्रियंका की आंखें भी गीली हो गईं। वंदना ने कहा- दीदी, जिस नाव की पूजा के बाद पैर छूते थे, उसे आंखों के सामने तोड़ दिया। प्रियंका कभी सिर झुकाकर तो कभी नजरें मिलाकर सब कुछ सुनती रहीं। करीब 36 मिनट तक वहां बैठकर सभी के दुख को साझा करने का प्रयास करती रहीं।

बातचीत के दौरान भी प्रियंका सबका ख्याल रखती रहीं। बुजुर्ग महिला को देखकर बोलीं- अम्मा, आराम से बैठ जाइए। कोई तकलीफ तो नहीं हो रही है। यह सिलसिला पूरे समय चलता रहा। बीच-बीच में पास बैठी विधानमंडल नेता आराधना मिश्रा और प्रदेश अध्यक्ष अजय सिंह लल्लू से प्रियंका जानकारी लेती रहीं। 

प्रियंका गांधी को सामने देख निषाद समुदाय की महिलाएं अपनी भावनाओं को काबू में नहीं कर सकीं। विद्या, मुन्नी ने बताया कि सरकार ने बालू खनन करने से रोक दिया है। अब रोजी-रोटी के भी लाले पड़ रहे हैं। अगर पुरखों का धंधा छूटा तो मिट जाएंगे। हमारा सब कुछ बर्बाद हो जाएगा। इतना कहते ही दोनों का गला भर आया तो प्रियंका ने हाथ थामकर हिम्मत बंधाई। 

प्रियंका से संवाद के दौरान शिवलोचन निषाद ने दुष्यंत कुमार की पंक्ति इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है, नाव जर्जर ही सही लहरों से टकराती तो है.. से दर्द बयां किया। कहा कि पुलिस वालों ने हमारी मां-बहन को ऐसे दौड़ा-दौड़ाकर पीटा जैसे वह डकैती और चोरी करके आई हों। बच्चों पर भी तनिक तरस नहीं आया। आशीष ने कहा कि होली का त्योहार आने को है, बच्चों की फीस नहीं दे पा रहे हैं। बालू खनन पर रोक हटवा दीजिए, परिवार भूख से मरने से बच जाएगा। समुदाय के लोगों ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से उनका मुकदमा लड़ने की मांग की तो प्रियंका ने मुस्कुरा कर हामी भरी। 

बसवार गांव की रेनू, संतोषी, मनोरमा, ननकी ने प्रियंका से कहा कि भरोसा नहीं था कि आप यहां हमारे बीच आएंगी। प्रियंका ने भी गले लगाकर महिलाओं के स्नेह को अपनाया। पार्षद अल्पना निषाद ने बताया कि बसवार गांव में नगर निगम ने कूंडा डंप करने के लिए जमीन ली थी। कई लोगों को अभी तक कोई मुआवजा नहीं मिला है। इस पर प्रियंका ने अलग से बात करने को कहा। 

निषाद समाज की महिलाओं से संवाद के दौरान प्रियंका के चेहरे के भाव भी बदलते रहे। कभी गंभीर तो कभी हल्की मुस्कुराहट भी दिखी। उन्होंने बातें सुनते समय दो बार चश्मा लगवाया और हटाया। बात करते-करते उनकी भी आंखें गीली हुईं और गला भर आया। पास बैठीं आराधना मिश्रा भी खुद को रोक नहीं सकीं। महिलाओं ने दर्द बताया तो दूसरी ओर बैठे पुरुष भी खुद को रोने से रोक नहीं सके। 

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