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गृहमंत्री अमित शाह: कश्मीर के मुद्दे को UN लेकर जाना जवाहर लाल नेहरू की थी सबसे बड़ी भूल

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जम्मू कश्मीर की समस्या से निपटने के तरीकों को गलत बताया है. उन्होंने रविवार को कहा कि कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र (UN) लेकर जाना नेहरू की सबसे बड़ी भूल थी. शाह ने कहा कि समूचे विश्व ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने का समर्थन किया है. कश्मीर घाटी में अब कोई प्रतिबंध नहीं है और विश्वास जताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पांच अगस्त को उठाये गए साहसिक कदम की वजह से जम्मू-कश्मीर अगले 10 साल में देश का सबसे विकसित क्षेत्र होगा. अमित शाह नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी (एनएमएमएल) में ‘संकल्प फॉरमर सिविल सर्वेंट्स फॉरम’ की ओर से आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे. इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 35 के तहत संयुक्त राष्ट्र गया था जो विवादित भूमि से संबंधित है.

अगर चार्टर के अनुच्छेद 51 के तहत संयुक्त राष्ट्र जाते तो यह भारतीय भूमि पर पाकिस्तान द्वारा अवैध कब्जे का मामला बनता. गृह मंत्री ने घाटी में पाबंदियों के बारे में ‘दुष्प्रचार’ फैलाने का विपक्ष पर आरोप लगाया, उन्होंने कहा कि प्रतिबंध कहा हैं? यह सिर्फ आपके दिमाग में हैं. कोई प्रतिबंध नहीं हैं. सिर्फ दुष्प्रचार किया जा रहा हैं. कश्मीर में 196 थाना-क्षेत्रों में से हर जगह से कर्फ्यू हटा लिया गया है और सिर्फ आठ थाना-क्षेत्रों में सीआरपीसी की धारा 144 के तहत पाबंदियां लगाई गई हैं. इस धारा के तहत पांच या इससे ज्यादा लोग एक साथ इकट्ठा नहीं हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि लोग कश्मीर में कहीं भी आने के लिए स्वतंत्र हैं. शेष भारत के कई पत्रकार नियमित तौर पर कश्मीर की यात्रा कर रहे हैं. हाल में संपन्न संयुक्त राष्ट्र महासभा का जिक्र करते हुए शाह ने कहा कि विश्व के सभी नेताओं ने अनुच्छेद 370 पर भारत के कदम का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि सभी विश्व नेता (न्यूयार्क में) सात दिनों के लिए जमा हुए थे. किसी भी एक नेता ने (जम्मू-कश्मीर का) मुद्दा नहीं उठाया. यह प्रधानमंत्री की बड़ी कूटनीतिक की जीत है. शाह ने कहा कि जम्मू कश्मीर में दशकों पुराने आतंकवाद ने 41,800 लोगों की जान ली है लेकिन किसी ने भी जवानों, उनकी विधवाओं या उनके अनाथ बच्चों के मानवाधिकार का मुद्दा नहीं उठाया. उन्होंने कहा कि कुछ दिनों से मोबाइल कनेक्शन नहीं चलने को लेकर लोग हल्ला कर रहे हैं. फोन की कमी से मानवाधिकार उल्लंघन नहीं होता है. जम्मू-कश्मीर में 10,000 नए लैंडलाइन कनेक्शन दिए गए हैं, जबकि बीते दो महीने में छह हजार पीसीओ दिए गए हैं. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 पर फैसला भारत की एकता और अखंडता को मजबूत करेगा. अमित शाह ने कहा कि जब 1947 में भारत को आज़ादी मिली तब तक भारत में ‘631′ देसी रियासतें थी और उनमें से ‘630′ रियासतों को तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने देखा था और एक को नेहरू ने. उन्होंने कहा कि 630 रियासतों का भारतीय संघ में विलय हो गया था लेकिन जम्मू-कश्मीर 1947 से ही एक मुद्दा बना हुआ है. गृह मंत्री ने कहा कि 27 अक्टूबर 1947 को भारतीय सेना कश्मीर पहुंची और पाकिस्तानी हमलावरों को हरा दिया. सेना पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की तरफ बढ़ रही थी और जीत हासिल करने की कगार पर थी. उन्होंने कहा कि अचानक से तत्कालीन सरकार ने संघर्ष विराम की घोषणा कर दी. जब हम युद्ध जीतने वाले थे तब संघर्षविराम घोषित करने की क्या जरूरत थी.

अगर संघर्षविराम की घोषणा नहीं की गई होती थी तो अब पाकिस्तान के कब्जे वाला क्षेत्र भी भारत का हिस्सा होता. अमित शाह ने कहा कि अनुच्छेद 370 को लेकर बहुत सारी अफवाहें हैं और दुष्प्रचार हैं और ये अब भी जारी है. उन्होंने कहा कि मैं आपसे कहना चाहता हूं कि अनुच्छेद 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर, भारत में पूरी तरह से एकीकृत नहीं हो सका. अनुच्छेद 370 की वजह से वहां भ्रष्टाचार था. गृह मंत्री ने कहा कि अनुच्छेद 370 की वजह से लोग हमेशा कहते थे कि जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. जब हम कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गुजरात या दिल्ली की बात करते हैं तो हमें यह नहीं कहना पड़ता है. उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 भूतपूर्व जनसंघ का मुद्दा था और भाजपा के गठन के बाद यह उसका भी मुद्दा रहा है. शाह ने कहा कि हमने इसके खिलाफ 11 आंदोलन किए और यहां तक कि जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इसके लिए अपने प्राण दिए. हम तीसरी पीढ़ी के नेता हैं. उन्होंने कहा कि जब नेहरू को गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने (पूर्व मुख्यमंत्री) शेख अब्दुल्ला को 11 साल तक जेल में रखा था. अब तो दो महीने ही हुए हैं और लोग इतनी बातें कर रहे हैं. शाह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के 1987 के विधानसभा चुनाव आतंकवाद के प्रसार का अहम मोड़ था जिसने अबतक 41,800 लोगों की जान ले ली.

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